उत्तर प्रदेश की मिट्टियों को वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जाता है-
- गंगा के विशाल मैदान की नूतन और उप नूतन मिट्टियां और
- दक्षिण पठार की प्राचीन रवेदार और विंध्यन क्षेत्र की बुन्देलखंडीय मिट्टियाँ
गंगा के विशाल मैदान की मिट्टियां
गंगा के विशाल मैदान की लगभग संपूर्ण मृदा को दो भागों में विभाजित किया जाता है-
- बांगर या पुरानी जलोढ़ मृदायें
- खादर या नवीन जलोढ़ मृदायें
> प्राचीनतम कॉप मिट्टी क्षेत्रों को बांगर कहते हैं > नवीन कॉप मिट्टी क्षेत्रों को खादर कहा जाता है।
बांगर मृदा
- बांगर मिट्टियों में फास्फोरस एवं चूने की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है जबकि नाइट्रोजन, पोटाश, जीवांश पदार्थ आदि की कमी पाई जाती है।
- बांगर मिट्टी को दोमट, मटियार, बलुई दोमट, भूंड या पुरातन कॉप मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
- उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में बांगर मिट्टी को उपरहार मिट्टी भी कहा जाता है।
खादर मिट्टी
- खादर मिट्टी नदियों के बाढ़ वाले मैदानों में पाई जाती हैं।
- खादर मिट्टी हल्के रंग वाली छिद्रयुक्त तथा महीन कणों वाली होती है।
- खादर मिट्टी बांगर मिट्टी की अपेक्षा अधिक उर्वरा शक्ति वाली होती है।
- खादर मिट्टी में सामान्यतः चूना, कोटा, मैग्नीशियम तथा जीवांश पदार्थों की अधिकता होती है जबकि नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं ह्यूमस पदार्थों की कमी पाई जाती है।
- खादर मिट्टी को नूतन कॉप, बलुआ, सिल्ट बलुआ, मटियार दोमट आदि नामों से जाना जाता है।
दक्षिण पठार की प्राचीन रवेदार और विंध्यन क्षेत्र की बुन्देलखंडीय मिट्टियाँ
उत्तर प्रदेश के दक्षिणी पठार की मिट्टियों को बुंदेलखंडी मृदा कहा जाता है। इस क्षेत्र में भोंटा, माड(मार), पडुआ, राकड़ आदि मिट्टियां पाई जाती है। उत्तर प्रदेश के जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर जिलों में काली मृदा का विस्तार होने के कारण चना, गेहूं, दलहनी फसलें और तिलहनी फसलों की मुख्य रूप से खेती की जाती है।
- भोंटा मिट्टी विंध्य पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
- माड (मार) मिट्टी, काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी के समान चिकनी होती है।
- पडुआ मिट्टी उत्तर प्रदेश के हमीरपुर, जालौन और यमुना नदी के ऊपरी जिलों में पाई जाती है। यह मिट्टी हल्के लाल रंग की होती है।
- राकड़ मिट्टी उत्तर प्रदेश के दक्षिणी पर्वतीय एवं पठारी ढलानों पर पाई जाती है।
- लाल मिट्टी उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, सोनभद्र जिलों में पाई जाती है। लाल मिट्टी में गेहूं, चना एवं दलहनी फसलें आदि उगाई जाती हैं।
- ऊसर एवं रेह मिट्टी उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, मैनपुरी, कानपुर, सीतापुर, उन्नाव, एटा, इटावा, रायबरेली और लखनऊ जिलों में पाई जाती है। रेहयुक्त क्षारीय उसर भूमि का उत्तर प्रदेश में अधिक विस्तार है। उत्तर प्रदेश की लगभग 1.37 मिलियन हेक्टर क्षेत्र की मृदा लवणों से प्रभावित है।
- बंजर तथा भाट नामक मृदा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थ नगर एवं गोंडा जिले में पाई जाती है।
- जलप्लावित नदी के किनारे पाई जाने वाली मिट्टी को उत्तर प्रदेश में ढूँह नाम से जाना जाता है।
- उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्व में स्थित कुशीनगर जिले की मिट्टी को स्थानीय भाषा में भाट कहा जाता है। इस मिट्टी में मोटे अनाज वाली फसलें उगाई जाती है।
- टर्शियरी मिट्टी उत्तर प्रदेश के शिवालिक पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है। यह मिट्टी चाय की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
मृदा अपरदन (Soil Erosion)
वायुवेग के कारण अथवा जल बहाव के कारण खेत की मिट्टी का उड़कर या बहकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर चला जाना मृदा अपरदन कहलाता है। उत्तर प्रदेश में वायु अपरदन प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में तथा जलीय अपरदन पूर्वी एवं दक्षिणी क्षेत्रों में अधिक होता है।
- उत्तर प्रदेश में कौन-कौन सी जनजाति में रहती हैं
चंबल नदी अधिग्रहण क्षेत्र में अवनालिका अपरदन (Gully Erosion) सर्वाधिक होता है जिससे उत्तर प्रदेश का इटावा जिला विशेष रूप से प्रभावित है। इसके कारण ही आगरा, इटावा और जालौन जिलों में बीहड़ पाए जाते हैं। वायु अपरदन से उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक प्रभावित जिले मथुरा एवं आगरा है। और जलीय अपरदन से उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र हिमालय का तराई प्रदेश है।
देश में सर्वाधिक बंजर भूमि राजस्थान राज्य में तथा सबसे कम गोवा राज्य में है।
उत्तर प्रदेश की प्रमुख मिट्टियां
- पर्वतीय मृदायें
- जलोढ़ मृदायें
- मिश्रित लाल एवं काली मृदायें
- लाल बलुई मृदायें
- तराई मृदायें
- लाल और पीली मृदायें
- मध्यम काली मृदायें
- लवण प्रभावित मृदायें
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