उत्तर प्रदेश की जनजातियां (Tribes of Uttar Pradesh)

उत्तर प्रदेश की जनजातियां

राष्ट्रपति के संविधान (अनुसूचित जनजातियां) आदेश, 1967 के तहत उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड सहित) की 5 जनजातियों – भोटिया, बुक्सा, जौनसारी, राजी एवं थारू को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था। उत्तराखंड के अलग होने के बाद 2003 में केंद्र सरकार ने प्रदेश की 10 और जनजातियों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) का दर्जा दिया।

2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों की कुल संख्या 11,34,273 (0.6%) है। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में अनुसूचित जनजातियों की संख्या सबसे अधिक तथा बागपत में सबसे कम है।
उत्तर प्रदेश के जालौन और अयोध्या जिलों में एक भी अनुसूचित जनजाति नहीं पाई जाती है।

उत्तर प्रदेश में पाई जाने वाली प्रमुख अनुसूचित जनजातियां- गोंड, बुक्सा, थारू, राजी, जौनसारी, खरवार एवं माहीगीर हैं।
उत्तर प्रदेश की प्रमुख अनुसूचित जनजातियां निम्न प्रकार हैं –

थारू जनजाति

थारू जनजाति के लोग उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र के 5 जिलों- (महाराजगंज, सिद्धार्थ नगर, श्रीवस्ती, बहराइच एवं लखीमपुर खीरी) के उत्तरी भागों में निवास करते हैं। थारू जनजाति के लोग किरात वंश से संबंधित हैं तथा कई उप जातियों में विभाजित हैं । थारू जनजाति के लोग कद में छोटे, चौड़ी मुखाकृति, और चमड़ी का रंग पीला होता है। पारंपरिक थारू पुरुष धोती पहनते हैं और बड़ी चोटी रखते हैं, जो हिंदू धर्म का प्रतीक है। पारंपरिक थारू स्त्रियां रंगीन लहंगा, ओढ़नी, चोली और बूटेदार कुर्ता पहनती हैं । इन्हें तरह-तरह के आभूषण और शरीर पर गुदना गुदवाना काफी पसंद होता है।

थारू जनजाति के लोगों का मुख्य भोजन चावल है इसके अलावा यह दाल, रोटी, दूध, दही और मछली मांस भी खाते हैं। दोपहर एवं शाम के भोजन के लिए थारू लोग क्रमशः मिझनी और बेरी शब्दों का प्रयोग करते हैं। थारू जनजाति में पहले संयुक्त व मातृसत्तात्मक परिवार प्रथा होती थी लेकिन अब इनमें काफी बदलाव हो रहा है।

थारू समाज में विवाह है बिना दहेज के होता है विवाह का खर्च दोनों पक्ष मिलकर उठाते हैं। थारू जनजाति में बदला विवाह प्रचलित है। थारू जनजाति के लोग दीपावली को शोक पर्व के रूप में मनाते हैं। बजहर नामक पर्व थारू जनजाति द्वारा मनाया जाता है। थारू जनजाति के लोगों को शिक्षा प्रदान करने हेतु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लखीमपुर खीरी में एक महाविद्यालय की स्थापना की गई है।

बुक्सा अथवा भोक्शा जनजाति

बुक्सा अथवा भोक्सा जनजाति उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में छोटी-छोटी ग्रामीण बस्तियों में निवास करती है। बुक्सा पुरुषों का कद और आंखें छोटी होती हैं उनकी पलकें भारी, चेहरा चौड़ा एवं नाक चपटी होती है। स्त्रियों में गोल चेहरा, गेहूं रंग तथा मंगोल नाकनक्श रूप से दिखाई पड़ते हैं। यह लोग मुख्यतः हिंदी बोलते हैं। बुक्सा लोगों का मुख्य भोजन मछली और चावल है। इनके अधिकांश पुरुषों में मदिरापान की आदत होती है इन लोगों में बंदर, गाय और मोर का मांस खाना वर्जित होता है।

इनकी पारंपरिक वेशभूषा में धोती, कुर्ता, सदरी और सिर पर पगड़ी मुख्य है। तथा स्त्रियों के पारंपरिक पहनावे में गहरी लाल, नीले या काले रंग की छींट का लहंगा, चोली और उसके साथ ओढ़नी मुख्य है। बुक्सा जनजाति के लोग हिंदू जातियों के समान ही अन्तर्विवाही होते हैं परंतु हिंदू समाज से भिन्न होते हैं, क्योंकि बुक्सा समाज में विवाह एक अनुबंध(Contract) मात्र होता है। इनमें हिंदुओं के समान ही अनुलोम तथा प्रतिलोम विवाह भी प्रचलित हैं ।

बुक्सा जनजातियों के परिवार अधिकांश संयुक्त तथा विस्तृत परिवार हैं। परिवार पितृसत्तात्मक व पितृवंशीय होते हैं। बुक्सा जनजाति के लोग चामुंडा देवी की पूजा करते हैं। इनके व्रत और त्योहार हिंदुओं के समान ही होते हैं। होली, दिवाली, दशहरा, जन्माष्टमी इनके प्रमुख त्योहार हैं । इनकी बिरादरी पंचायत प्रमुख राजनीतिक संगठन है, बिरादरी पंचायत चार स्तरों में बँटी होती है जिनके सर्वोच्च अधिकारी तखत, मुंसिफ, दरोगा और सिपाही नाम से जाने जाते हैं। इन सभी के अधिकार वंशागत होते हैं और इन्हें समाज में बड़े सम्मान से देखा जाता है। बुक्सा जनजाति के लोगों की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है।

खरवार/खैरवार जनजाति

उत्तर प्रदेश के देवरिया, बलिया, गाजीपुर, मिर्जापुर तथा सोनभद्र जिलों में खरवार जनजाति के लोग निवास करते हैं। इनकी पारंपरिक आर्थिक गतिविधियों में कृषि, पशुपालन, शिकार आदि शामिल है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि खरवार जनजाति के लोग कत्थे का व्यापार करते थे।इनकी उप जातियों में सूरजवंशी, पटबन्दी, दौलतबन्दी, खेरी, राऊत, मौगती, मोझयाली, गोंजू आर्मिया आदि हैं।

यह शरीर से बलिष्ठ एवं बहादुर होते हैं इनकी स्त्रियां भी पुरुषों की तरह हिम्मती होती हैं । इनकी वाणी में कर्कशता अधिक होती है तथा किसी भी शब्द का उच्चारण खींचकर करते हैं। खरवार जनजाति के पुरुषों का पारंपरिक पहनावा केहुन तक धोती, गंजी एवं सिर पर पगड़ी होता है तथा स्त्रियों का पारंपरिक पहनावा साड़ी, चोली एवं आभूषण हैं। खरवार जनजाति के लोग मुख्यता हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों का पालन करते हैं । यह लोग बघउस, वनसन्ती, दूल्हादेव, घमसान, गोरइया, शिव, दुर्गा, हनुमान आदि देवी-देवताओं के अतिरिक्त जंतुओं में नाग आदि की पूजा करते हैं। करमा खरवार जनजाति का नृत्य है ।

प्रारंभ में यह लोग जंगलों में शिकार कृषि पशुपालन और लकड़ी काटने का काम करते थे लेकिन अब सरकार द्वारा इन क्रियाओं को प्रतिबंधित कर देने के कारण इन्हें मजबूर होकर भिक्षा मांगना पड़ता है, क्योंकि इनके पास अपनी कृषि योग्य भूमि नहीं है। अपनी गरीबी के कारण यह अपने बच्चों को विद्यालयों में नहीं भेज पाते हैं इनके बच्चे गाय-बैल चराने, बीड़ी पत्ता तोड़ने आदि काम करते हैं सदियों से शोषित रहने के कारण इनकी आर्थिक दशा काफी दयनीय हो गई है।

माहीगीर जनजाति

माहीगीर जनजाति के लोग उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में रहते हैं। इस जनजाति के लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं। तथा इनकी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार मछली पकड़ना है।

उत्तर प्रदेश की जनजातियों की सूची एवं उनके निवास स्थान

जनजातिजनपद
1. गोंड,धुरिया, नायक, ओझा,पथारी, राजगोंडमहाराजगंज, सिद्धार्थ नगर, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, मिर्जापुर एवं सोनभद्र
2. खरवार/खैरवारदेवरिया, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी एवं सोनभद्र
3. सहरियाललितपुर
4. पहरियासोनभद्र
5. बैगासोनभद्र
6. पांखासोनभद्र एवं मिर्जापुर
7. अगरियासोनभद्र
8. पटारीसोनभद्र
9. चेरोसोनभद्र एवं वाराणसी
10. भुईया, भूनियासोनभद्र

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1 thought on “उत्तर प्रदेश की जनजातियां (Tribes of Uttar Pradesh)”

  1. Sir mai Sitapur ka niwasi hu aur mera jati certificate s t ka nahi banaya ja raha hai jabki Mai S T me aata hu

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