उत्तर प्रदेश की प्रथम वन नीति वर्ष 1952 में तथा द्वितीय वन नीति वर्ष 1988 में घोषित की गई। राज्य सरकार द्वारा भारतीय वन (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, अप्रैल 2000, 2001 में लागू हुआ।
राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार देश के कुल क्षेत्रफल के 33.33% (60% पर्वतीय 25% मैदानी) भू-भाग पर वनों का विस्तार आवश्यक है। लेकिन वर्तमान में प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के केवल 6.09% भाग पर वनाच्छादन तथा 3.09% भाग पर वृच्छादन है अर्थात कुल 9.18% भाग पर वन एवं वृच्छादन है।
सामान्य रूप से उत्तर प्रदेश में पाए जाने वाले वन उष्णकटिबंधीय है लेकिन कुछ विशेषताओं के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया जाता है-
- उष्णकटिबंधीय आर्द्र (नम) पर्णपाती वन
- उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन
- उष्णकटिबंधीय कंटीले वन
उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन
आर्द्र (नम) पर्णपाती वन प्रदेश के 100 से 150 सेंटीमीटर वर्षा वाले भावर एवं तराई क्षेत्रों में पाए जाते हैं। जिसमें झाड़ियां, बांस के झुरमुट, बेंत, साल, बेर, गूलर, पलास, महुआ, सेमल, आंवला, और जामुन आदि वृक्षों का बाहुल्य होता है। इनके अतिरिक्त इमली,शीशम आदि वृक्ष भी पाए जाते हैं।
उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन
प्रदेश में उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन पूर्व, मध्य एवं पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। शुष्क पर्णपाती वनों में नीम, पीपल, शीशम, जामुन, अमलतास, बेल, और अंजीर के वृक्ष पाए जाते हैं।
उष्णकटिबंधीय कंटीले वन (झाड़ियाँ)
प्रदेश के दक्षिणी भाग में जहां औसत वार्षिक वर्षा 50 से 75 सेंटीमीटर होती है, कटीली झाड़ियों वाले वन पाए जाते हैं। इनमें अकेसिया, कँटीले लेगुमेस, युफर्बियास, फुलाई, कत्था , कक्को, धामन, रेऊनझा, थोर और नीम आदि के वृक्ष पाए जाते हैं।
उष्णकटिबंधीय कँटीली झाड़ियों वाले वनों से लाल एवं गोंद प्राप्त होती है। इन वनों के वृक्षों की ऊंचाई सामान्यतया 5 से 10 मीटर तक होती है।
- उत्तर प्रदेश में कौन-कौन से और कितने वन्य जीव विहार हैं?
- उत्तर प्रदेश के ऊर्जा संसाधन (Energy resources of Uttar Pradesh)
वनों से लाभ
मानव सभ्यता के विकास और संबर्द्धन (Promotion) में वनों का विशेष महत्त्व है। वनों से मिलने वाले अप्रत्यक्ष लाभ, प्रत्यक्ष लाभ से अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। वन एक नवीकरणीय संसाधन (Renewable resource) हैं जो पर्यावरण की गुणवत्ता में वृद्धि करते हैं।
वनों के कारण वायु और जल मृदा अपरदन तथा बाढ़ से हमारी भूमि की रक्षा होती है। तथा वनों की पत्तियों के गिरने और सड़ने-गलने से भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (Co2) और ऑक्सीजन (O2) संतुलन तथा जलवायु को सम बनाए रखने में वनों की अहम भूमिका होती है। जिन क्षेत्रों में वनाच्छादन अधिक पाया जाता है वहां वर्षा अधिक होती है। वनों में अनेकों जीव जंतुओं को संरक्षण मिलता है। इस प्रकार जैव और पर्यावरणीय दोनों प्रकार के संतुलन में वनों की अहम भूमिका होती है।
- चीड़ से प्राप्त होने वाले राल का बिरोजा और तारपीन उपयोग किया जाता है।
- पर्वतों पर हिम रेखा के पास मिलने वाले भोजपत्र वृक्षों से प्राकृतिक रूप में कागज प्राप्त होता है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही भोजपत्र कागजों कागजों का प्रयोग होता आ रहा है।
- खैर वृक्ष के रस से कत्था बनाया जाता है।
- सेमल और गुरेल वृक्ष की लकड़ियों से माचिस की तीली और डिब्बी का निर्माण किया जाता है।
- बबूल की छाल से प्राप्त रंग से चमड़े की रंगाई एवं अन्य उपयोग हेतु रंग बनाया जाता है।
- तेंदू के पत्तों से बीड़ियाँ बनाई जाती हैं।
- बेंत से डंडे और फर्नीचर तथा बेंत, बांस तथा अन्य घासों तथा कई अन्य वृक्षों की लुगदियों से कागज बनाया जाता है।
- साखू और महुए के पत्तों से पत्तल और दोने बनाए जाते हैं।
- रबर वृक्ष के रस से रबड़ तथा ताड़ एवं खजूर के रस से ताड़ी बनाई जाती है।
- साल, चीड़, देवदार एवं सागौन वृक्षों का इमारती लकड़ी के रूप में उपयोग किया जाता है।
अन्य महत्वपूर्ण बिंदु
- किसी राज्य में वनों का क्षेत्रफल वन क्षेत्र (Forest Area) एवं वनावरण (Forest Cover) के आधार पर व्यक्त किया जाता है।
- वन भूमि के रूप में अभिलिखित भू-क्षेत्र को वन क्षेत्र के रूप में निरूपित किया जाता है चाहे उसमें वन हों या ना हों।
- उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक अतिसघन वन क्षेत्र (804.19 वर्ग किमी.) लखीमपुर खीरी जिले में है।
- उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक वन तराई एवं भाबर क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- सोनभद्र की वेलहत्थी ग्राम को प्रदेश का पहला ग्राम वन घोषित किया गया है।
- उत्तर प्रदेश के वन महोत्सव का शुभारंभ जुलाई, 1952 से हुआ है।
- वन महोत्सव आंदोलन का मूलाधार है- ” वृक्ष का अर्थ जल है, जल का अर्थ रोटी है और रोटी ही जीवन है।”
- यूकेलिप्टस वृक्ष को पारिस्थितिकी आतंकवादी कहा जाता है।
- वन क्षेत्रों के विस्तार के लिए उत्तर प्रदेश सरकार 2007-08 से ऑपरेशन ग्रीन का संचालन कर रही है। इसके लिए बरेली, पीलीभीत, बिजनौर, सहारनपुर, मेरठ, और बदायूं जिलों में हाईटेक नर्सरी विकसित की जा रही हैं।
- कागज का प्रमुख केंद्र- सहारनपुर।
- बीड़ी, चीनी मिट्टी के खिलौने- मिर्जापुर, झांसी, सहारनपुर, बरेली
- लकड़ी के खिलौने- सोनभद्र, वाराणसी
- खेल का सामान- मेरठ
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धन्यवाद..!
Nice very help ful